Sunday, November 23, 2014

ब्राह्मी : दिमाग के लिए एक उत्तम टॉनिक

यदि व्यक्ति का दिमाग तेज़ है तो फिर वो जग जीत सकता है। यदि मनुष्य का दिमाग स्वस्थ है तो फिर चिंता की कोई बात नहीं है। दिमाग की तरोताजगी के लिए आयुर्वेद में ब्रहमी विशेष उपयोगी एंव लाभकारी मानी गयी है क्योंकि यह मानव मस्तिष्क की मेघा शक्ति को बढ़ाने में महत्पूर्ण भूमिका निभाती है मस्तिष्क का सम्बन्ध शरीर के विभिन्न अंगो से होता है।
इसलिए जब भी शरीर में किसी प्रकार का रसायनिक या भौतिक परिवर्तन होता है तो, उसकी सूचना सर्वप्रथम मस्तिष्क को पहुंचती है। कहा जाता है कि ’जैसा खाओगे अन्न, वैसा रहेगा मन और जैसा रहेगा मन, वैसा रहेगा तन’। यदि आपका दिमाग स्वसथ्य है तो सम्भवतः शरीर भी स्वस्थ्य रहेगा। अब मैं ब्रहमी के कुछ विशेष उपाय बता रहा हूं, जिनका प्रयोग करके आप अधिक से अधिक लाभ प्राप्त कर सकते है।
1- जिन व्यक्तियों को अनिंद्रा से सम्बन्धित शिकायत रहती है, उन्हे यह प्रयोग करना चाहिए। सोने से 1 घन्टा पूर्व 250 मिली0 गर्म दूध में 1 चम्मच ब्रहमी का चूर्ण मिलाकर नित्य सेंवन करने से रात्रि में नींद अच्छी आती है, तनाव से मुक्ति मिलती है एंव स्मरण शक्ति तेज होती है।
2- जिन बच्चों का पढ़ने में मन नहीं लगता एंव घबराते है। उनको 200 मिली0 गर्म दूध में 1 चम्मच ब्रहमी का चूर्ण नित्य सेंवन कराने से स्मरण शक्ति में वृद्धि होती तथा उनका पढ़ाई में मन भी लगने लगता है।
3- जिन जातकों का चन्द्र ग्रह कमजोर होकर अशुभ फल देता है जिसके कारण वे चिड़चिड़े हो जाते है तथा अनिर्णय की स्थिति में रहते है। वह लोग भी उपरोक्त विधि का प्रयोग कर सकते है।
4- ब्रहमी को वास्तु की दृष्टि से भी महत्पूर्ण माना जाता है। जिस घर में ब्रहमी का पेड़ लगा होता है, उस परिवार के बच्चों की स्मरण शक्ति अच्छी होती है। और घर में अचानक दुर्घटना होने की आशंका भी नहीं रहती है।

Tuesday, June 17, 2014

बच्चों का बिस्तर पर पेशाब करना Home remedies for bed-wetting in Children

बच्चों का बिस्तर पर पेशाब करना -
बच्चों का थोड़ा बड़े होने पर पेशाब करना एक आम समस्या है | इस समस्या के बहुत से कारण हो सकते हैं | कई अनुभवियों के अनुसार स्नायु विकृति के कारण या पेट में कीड़े होने पर भी बच्चे सोते हुए बिस्तर पर पेशाब कर देते हैं | पेशाब की नली में रोग के कारण भी बच्चा सोते हुए पेशाब कर देता है | कई बार कुछ गरिष्ठ भोजन व ठंडे पदार्थों के अधिक सेवन से भी यह समस्या उत्पन्न हो जाती है | इस समस्या को समाप्त करने के लिए कोई भी औषधि देने से पूर्व माता-पिता को बच्चे के भोजन की कुछ आदतें सुधारनी जरूरी हैं | बच्चों को सोने से एक घंटा पहले भोजन करा देना चाहिए और सोने के बाद उसे जगाकर कुछ भी खाने-पीने को नहीं देना चाहिए | बच्चे को बिस्तर पर जाने से पहले एक बार पेशाब अवश्य करा देना चाहिए |
कुछ औषधियों द्वारा भी इस समस्या का समाधान सम्भव है -

१- पचास ग्राम अजवायन का चूर्ण कर लें | प्रतिदिन एक ग्राम चूर्ण को रात को सोने से पूर्व बच्चे को खिलाएं | ऐसा कुछ दिनों तक नियमित रूप से करने से यह रोग ठीक हो जाता है |

२- दो मुनक्कों के बीज निकालकर उसमें १-१ काली मिर्च डालकर बच्चों को रात को सोने से पहले खिला दें | ऐसा दो हफ़्तों तक नियमित रूप से सेवन करने से यह बीमारी दूर हो जाती है |

३- प्रतिदिन दो अखरोट और बीस किशमिश बच्चों को खिलाने से बिस्तर में पेशाब करने की समस्या दूर हो जाती है |

४- रात को सोते समय बच्चों को शहद खिलाने से यह रोग समाप्त हो जाता है |

५- जामुन की गुठलियों को छाया में सुखाकर बारीक पीस लें | इस चूर्ण का २-२ ग्राम दिन में दो बार पानी के साथ सेवन करने से बच्चे बिस्तर पर पेशाब करना बंद कर देते हैं |

६- २५० मिली दूध में एक छुहारा डालकर उबाल लें | इसे दो घंटे तक रखा रहने दें | इसके बाद इसमें से छुहारा निकाल कर बच्चे को खिला दें और इस दूध को हल्का गर्म करके ऊपर से पिला दें | ऐसा प्रतिदिन करने से कुछ ही दिनों में बच्चों का बिस्तर पर पेशाब करना बंद हो जाता है |

Wednesday, June 4, 2014

गन्ने के रस के फायदे

 गन्ने के रस के फायदे  Health benefits of Sugarcane juice
ग्रीष्म ऋतु में गन्ने का रस बडी आसानी से उपलब्ध हो जाता है इसके सेवन के बहुत फायदे हैं -
-इस रस के निरन्तर सेवन से शरीर का दुबला पन, पेट की गर्मी , हृदय की जलन एवं कमजोरी दूर होती है !
-यह रस पीलिया रोग में अमृत तुल्य है !
-भोजन के उपरांत एक ग्लास रस पीने से त्वचा रोगों में लाभ मिलता है !
-इस रस में कैल्शियम, पोटेशियम, मैग्नीशियम, आयरन, फास्फोरस आदि पाए जाते हैं जो शरीर के लिए आवश्यक है !
-इसके सेवन से पैशाब जलन और मूत्राशय पथरी का नाश होता है !
ग्रीष्म ऋतु में गन्ने का रस बडी आसानी से उपलब्ध हो जाता है इसके सेवन के बहुत फायदे हैं -
-इस रस के निरन्तर सेवन से शरीर का दुबला पन, पेट की गर्मी , हृदय की जलन एवं कमजोरी दूर होती है !
-यह रस पीलिया रोग में अमृत तुल्य है !
-भोजन के उपरांत एक ग्लास रस पीने से त्वचा रोगों में लाभ मिलता है !
-इस रस में कैल्शियम, पोटेशियम, मैग्नीशियम, आयरन, फास्फोरस आदि पाए जाते हैं जो शरीर के लिए आवश्यक है !
-इसके सेवन से पैशाब जलन और मूत्राशय पथरी का नाश होता है !

आलूबुखारा के औषधीय गुण

आलूबुखारा के औषधीय गुण
आलूबुखारा -
                      यह मूलतः यूरोप तथा पश्चिमी एशिया में प्राप्त होता है | भारत में विशेषतः पश्चिमी शीतोष्ण हिमालय के जम्मू एवं कश्मीर,हिमाचल प्रदेश,उत्तराखंड तथा दक्षिण भारत में नीलगिरि के पहाड़ी क्षेत्रों में १५००-२१०० मीटर की ऊंचाई पर उत्त्पन्न होता है | इसके फल गोलाकार तथा चमकदार होते हैं | इसके कच्चे फल खट्टे तथा पके फल खट्टे-मीठे होते हैं,फलों के भीतर पीला गूदा तथा एक बड़ा बीज होता है | इसके वृक्ष से एक प्रकार का पीले रंग का गोंद निकलता है,जो बबूल के गोंद के सामान दिखाई देता है | इसका पुष्पकाल तथा फलकाल फ़रवरी से जुलाई तक होता है | 
                                       इसके फल में प्रोटीन,कार्बोहायड्रेट,वसा,कैल्शियम,मैग्नीशियम,लौह,पोटैशियम , विटामिन C तथा आर्गेनिक अम्ल भी पाया जाता है | बीज में तेल,प्रोटीन,कार्बोहायड्रेट,खनिज एवं एमीग्लैडीन पाया जाता है | आलूबुखारे के औषधीय उपयोग - 

१- नकसीर 
           आलूबुखारे के पत्तों का रस निकालकर १-२ बूँद नाक में डालने से नकसीर में लाभ होता है | 

२- पित्तविकार-
           भोजन से पूर्व आलूबुखारे के मीठे फल का सेवन करने से यह पित्त विकारों का शमन करता है |

३- उदरकृमि 
           आलूबुखारे के पत्तों को पीसकर पेट पर लेप करने से पेट के कीड़े निकल जाते हैं | 

४- तृष्णा -
           आलूबुखारे का सेवन करने से प्यास व अरुचि का शमन होता है | 

५-अजीर्ण -
           इसके बीजों को बादाम की तरह शुष्क फल (dry fruits ) के रूप में खाने से अजीर्ण में लाभ होता है | 

६- स्मृतिवर्धनार्थ-
            आलूबुखारे के बीज की गिरी का सेवन करने से धीरे-धीरे स्मरणशक्ति बढ़ती है |
यह मूलतः यूरोप तथा पश्चिमी एशिया में प्राप्त होता है | भारत में विशेषतः पश्चिमी शीतोष्ण हिमालय के जम्मू एवं कश्मीर,हिमाचल प्रदेश,उत्तराखंड तथा दक्षिण भारत में नीलगिरि के पहाड़ी क्षेत्रों में १५००-२१०० मीटर की ऊंचाई पर उत्त्पन्न होता है | इसके फल गोलाकार तथा चमकदार होते हैं | इसके कच्चे फल खट्टे तथा पके फल खट्टे-मीठे होते हैं,फलों के भीतर पीला गूदा तथा एक बड़ा बीज होता है | इसके वृक्ष से एक प्रकार का पीले रंग का गोंद निकलता है,जो बबूल के गोंद के सामान दिखाई देता है | इसका पुष्पकाल तथा फलकाल फ़रवरी से जुलाई तक होता है |
इसके फल में प्रोटीन,कार्बोहायड्रेट,वसा,कैल्शियम,मैग्नीशियम,लौह,पोटैशियम , विटामिन C तथा आर्गेनिक अम्ल भी पाया जाता है | बीज में तेल,प्रोटीन,कार्बोहायड्रेट,खनिज एवं एमीग्लैडीन पाया जाता है | आलूबुखारे के औषधीय उपयोग -

१- नकसीर
आलूबुखारे के पत्तों का रस निकालकर १-२ बूँद नाक में डालने से नकसीर में लाभ होता है |
२- पित्तविकार-
भोजन से पूर्व आलूबुखारे के मीठे फल का सेवन करने से यह पित्त विकारों का शमन करता है |
३- उदरकृमि
आलूबुखारे के पत्तों को पीसकर पेट पर लेप करने से पेट के कीड़े निकल जाते हैं |
४- तृष्णा -
आलूबुखारे का सेवन करने से प्यास व अरुचि का शमन होता है |
५-अजीर्ण -
इसके बीजों को बादाम की तरह शुष्क फल (dry fruits ) के रूप में खाने से अजीर्ण में लाभ होता है |
६- स्मृतिवर्धनार्थ-
आलूबुखारे के बीज की गिरी का सेवन करने से धीरे-धीरे स्मरणशक्ति बढ़ती है |

वमन (उल्टी) Home remedies for vomiting

वमन (उल्टी) Home remedies for vomiting 
 
वमन या उल्टी कोई बड़ा रोग नहीं है बल्कि पेट की खराबी का ही एक रूप है । जब कभी कोई अनावश्यक पदार्थ पेट में अधिक एकत्रित हो जाता है तो उसे निकालने के लिए पेट प्रतिक्रिया करता है जिससे पेट में एकत्रित पदार्थ उल्टी द्वारा बाहर निकल जाता है | कभी - कभी अधिक उल्टी होने से रोगी के शरीर में पानी की कमी होने के साथ-साथ कमजोरी भी आ जाती है |
आइये जानते हैं विभिन्न औषधियों द्वारा रोग का उपचार -

१- पुदीने और नींबू का रस बराबर मात्रा में मिला लें | यह एक चम्मच की मात्रा में ३-४ बार रोगी को पिलाने से उल्टी का बार- बार आना बंद हो जाता है |

२- १०-१० मिली पुदीना,प्याज़ और नींबू का रस मिलाकर थोड़ी-थोड़ी मात्रा में रोगी को पिलाने से हैजे में होने वाली उलटी में बहुत लाभ होता है |

३- तुलसी के पत्तों का रस पीने से उल्टी भी बंद हो जाती है और पेट के कीड़े भी मर जाते हैं| शहद और तुलसी का रस मिलाकर चाटने से जी मिचलाना और उल्टी ठीक होती है|

४- अगर उल्टी बंद न हो रही हो तो दो लौंग और थोड़ी सी दालचीनी लेकर एक कप पानी में डालकर उबाल लें और जब पानी आधा रह जाए तब छानकर रोगी को पिलायें| इससे उल्टी का बार-बार आना बंद हो जाता है|

५- उल्टी होने पर सूखा या हरा धनिया कूटकर पानी में डालकर फिर निचोड़कर ५ चम्मच रस निकाल लें | यह रस बार-बार रोगी को पिलाने से उलटी आनी बंद हो जाती है |

६- नींबू को काटकर इसमें चीनी और काली मिर्च भरकर चूंसने से उल्टी और जी मिचलाना बंद हो जाता है |

७- पका हुआ केला खाने से खून की उल्टी बंद हो जाती है |

८- २० ग्राम सौंफ और दस पुदीने के पत्तों को एक लीटर पानी में उबालकर छान लें और ठंडा करके थोड़ी-थोड़ी देर में रोगी को पिलायें | इससे उल्टी में बहुत आराम होता है |

उड़द के स्वास्थ लाभ

Health benefits of Urd 
उड़द -
उड़द का उपयोग दाल के रूप में प्रायः समस्त भारतवर्ष में किया जाता है । इसकी दाल व बाजरे की रोटी मेहनती लोगों का प्रिय भोजन है| उड़द काली व हरी कई प्रकार की होती है | सब प्रकार की उड़दों में काली उड़द उत्तम मानी गयी है। वैद्यक ग्रंथो में अनेक पौष्टिक प्रयोगों में उड़द की प्रशंसा की गयी है | यह दाल वायुकारक होती है | इसके इस दोष को दूर करने के लिए इसमें हींग पर्याप्त मात्रा में डालना चाहिए| दूध देने वाली गाय या भैंस को उड़द खिलाने से ये दूध अधिक मात्रा में देती हैं | इसके पत्तों और डंडी का चूरा भी पशुओं को खिलाया जाता है |
उड़द एक पौष्टिक दाल है | यह पित्त और कफ को बढ़ाता है | उड़द को अपनी पाचन शक्ति को ध्यान में रखते हुए उपयोग करना चाहिए | विभिन्न रोगों में उड़द का उपयोग -

१- उड़द की दाल को पानी में भिगो लें | जब यह पूरी तरह फूल जाए तब इसको पीसकर सिर पर लेप की तरह लगाने से सिर का दर्द दूर हो जाता है |

२- साबुत उड़द जले हुए कोयले पर डालें और इसका धुआं सूंघें | इससे हिचकी रोग ठीक हो जाता है |

३- उड़द को पीसकर घाव के ऊपर बाँधने से पस निकल जाती है तथा घाव ठीक हो जाता है |

४- उड़द के आटे में थोड़ी सौंठ,थोड़ा नमक,और थोड़ी हींग मिलाकर उसकी रोटी बनाकर एक तरफ से सेंक लें और उसको उतारकर कच्चे भाग की तरफ तिल का तेल लगाकर वेदनायुक्त स्थान पर बाँधने से वेदना का शमन होता है |

५- रात को ५० ग्राम उड़द की दाल भिगो दें | सुबह इसे पीसकर आधा गिलास दूध में स्वादानुसार मिश्री मिलाकर पियें | यह हृदय को शक्ति देता है |

Ayurveda is a vast medicinal science. It is said to have been originated in India about 5000 years back. Unlike other medicinal systems, Ayurveda focuses more on healthy living than treatment of diseases. The main concept of Ayurveda is that it personalizes the healing process. According to Ayurveda, the human body is composed of four basics-the dosha, dhatu, mala and agni. There is immense significance of all these basics of the body in Ayurveda. These are also called the Mool Siddhant or the basic fundamentals of Ayurvedic treatment.

Basic Concepts Of Ayurveda

Dosha
The three vital principles of doshas are vata, pitta and kapha, which together regulate and control the catabolic and anabolic metabolism. The main function of the three doshas is to carry the byproduct of digested foods throughout the body, which helps in building up the body tissues. Any malfunction in these doshas causes disease.

Dhatu
Dhatu can be defined, as one, which supports the body. There are seven tissue systems in the body. They are as Rasa, Rakta, Mamsa, Meda, Asthi, Mjja and Shukra which represent the plama, blood, muscle, fat tissue, bone, bone marrow and semen respectively. Dhatus only provide the basic nutrition to the body. And it helps in the growth and structure of mind.

Mala
Mala means waste products or dirty. It is third in the trinity of the body i.e. doshas and dhatu. There are three main types of malas, e.g. stool, urine and sweat. Malas are mainly the waste products of the body so their proper excretion from the body is essential to maintain the proper health of the individual. There are mainly two aspect of mala i.e. mala and kitta. Mala is about waste products of the body whereas kitta is all about the waste products of dhatus.

Agni
All kinds of metabolic and digestive activity of the body takes place with the help of the biological fire of the body called Agni. Agni can be termed as the various enzymes present in the elementary canal, liver and the tissue cells.

Diseases
Disease is defined as the state of mind wherein a person experiences discomfort, pain and injury. Fundamentally, a disease is caused by the imbalance of the three doshas - Vata, Pitta and Kapha. However, the diseases are also categorized into those that can be cured and the one that cannot be cured by Ayurvedic treatment. Moreover, the texts of Ayurveda suggest that diseases are also classified according to the underlying cause - whether it is psychological, physiological or an external factor.

Ayurveda Basics
Ayurveda is an ancient medicine system of the Indian subcontinent. The word Ayurveda has been a conjugation of two Sanskrit words ayus, meaning 'life' and veda, meaning 'science', thus ayurveda literally means the 'science of life'. Unlike other traditional medicinal systems, Ayurveda is more focused on simple and logical therapies. It is in fact a set of practical and simple guidelines for long life and good health.

Dhatu
Dhatu are basically the body tissues which are responsible for the functioning of the systems and organs and the structure of the body. Each of the Dhatus is built out of a previous one and they develop on the nourishment that comes from the digestive system.

Doshas
Doshas play a vital role in the basic foundation of Ayurveda. They are responsible for coordinating and directing all the substances and structures of the body. According to Ayurveda there are three vital principles, which regulate and control the biological functions of the body. They are known as Vata, Pitta and Kapha.

Mala
Mala are the substances or waste matter to be thrown out of the body. They are actually by products formed as a result of various physiological activities going on in the body. Purish (stool), Mutra (urine) and Sweda (sweat) are considered as main excretory product of the body. These are also known as Dushya as these tend to be influenced to cause pathology or disease by imbalanced doshas.

- See more at: http://ayurveda.iloveindia.com/ayurveda-fundamentals/#sthash.Y8MLHcaJ.dpuf

Tuesday, June 3, 2014

उदर-वायु [पेट में गैस बनना], Ayurvedic remedies for Gas trouble

Ayurvedic remedies for Gas trouble in Hindi

उदर-वायु [पेट में गैस बनना]

वैद्य नवीन चौहान, आयुर्वेद फिजीशियन 

उदर-वायु एक आम तथा कभी न कभी हर किसी को होने वाली समस्या है। आयुर्वेद में  पेट गैस को अपांनवायु या  अधोवायु बोलते हैं। इसका मूल कारण जठराग्नि का असंतुलन होना  है।  पेट में वायु की विकृति से कई बीमारियां हो सकती हैं, जैसे एसिडिटी, कब्ज, पेटदर्द, सिरदर्द, जी मिचलाना, बेचैनी आदि। :

सामान्य कारण

पेट में गैस बनने के कई कारण हो सकते हैं जैसे:


  • बैक्टीरिया का पेट में ओवरप्रोडक्शन होना 
  • मिर्च-मसाला, तली-भुनी चीजें, जंक फूड  ज्यादा खाने से
  • पाचन संबधी विकार (कमजोर जठराग्नि)
  • विरुद्ध आहार का सेवन : बींस, राजमा, छोले, लोबिया, मोठ, उड़द की दाल, फास्ट फूड, ब्रेड और किसी-किसी को दूध या भूख से ज्यादा खाने से। खाने के साथ कोल्ड ड्रिंक लेने से क्योंकि इसमें गैसीय तत्व होते हैं। इसके साथ बासी खाना खाने से और खराब पानी पीने से भी गैस हो जाती है।
  • समय पर भोजन न करना 


आयुर्वेद उपचार व बचाव 

आयुर्वेद में जठराग्नि को प्रधान अग्नि माना गया है। अतः उन कारणो का त्याग करें जिनसे जठराग्नि में विकृति आती है। सही समय पर, सही भोज्य पदार्थों को ही ग्रहण करें । 
काला नमक, जीरा, सोंठ, काली मिर्च, पिप्पली, अजवायन आदि औषधियाँ अग्नि को ठीक करने में सहायक हैं। इसके अतिरिक्त वैद्य की सलाह से हिंगवासटक चूर्ण, अभयारिस्ट, शंख भस्म, महाशंख वटी आदि औषधियों का प्रयोग भी गैस की समस्या में किया जा सकता है। 

घरेलू उपचार


* भोजन के साथ सलाद के रूप में टमाटर का प्रतिदिन सेवन करना लाभप्रद होता है। यदि उस पर काला नमक डालकर खाया जाए तो लाभ अधिक मिलता है। पथरी के रोगी को कच्चे टमाटर का सेवन नहीं करना चाहिए।
* 1/2 चम्मच सूखा अदरक पाउडर [सौंठ] लें और उसमें एक चुटी हींग और सेंधा नमक मिला कर एक कप गरम पानी में डाल कर पीएं।
* गैस के कारण सिर दर्द होने पर चाय में पिसी कालीमिर्च डालें। वही चाय पीने से लाभ मिलता है।
* कुछ ताजा अदरक स्लाइस की हुई नींबू के रस में भिगो कर भोजन के बाद चूसने से राहत मिलेगी।
* पेट में या आंतों में ऐंठन होने पर एक छोटा चम्मच अजवाइन में थोड़ा नमक मिलाकर गर्म पानी में लेने पर लाभ मिलता है। बच्चों को अजवायन थोड़ी दें।
*भोजन के एक घंटे बाद 1 चम्मच काली मिर्च, 1 चम्मच सूखी अदरक और 1 चम्मच इलायची के दानो को 1/2 चम्मच पानी के साथ मिला कर पिएं।
* वायु समस्या होने पर हरड़ के चूर्ण को शहद के साथ मिक्स कर खाना चाहिए।
* अजवायन, जीरा, छोटी हरड़ और काला नमक बराबर मात्रा में पीस लें। बड़ों के लिए दो से छह ग्राम, खाने के तुरंत बाद पानी से लें। बच्चों के लिए मात्रा कम कर दें।
* अदरक के छोटे टुकड़े कर उस पर नमक छिड़क कर दिन में कई बार उसका सेवन करें। गैस परेशानी से छुटकारा मिलेगा, शरीर हलका होगा और भूख खुलकर लगेगी।

योग

वज्रासन : खाने के बाद घुटने मोड़कर बैठ जाएं। दोनों हाथों को घुटनों पर रख लें। 5 से 15 मिनट तक करें।
गैस पाचन शक्ति कमजोर होने से होती है। यदि पाचन शक्ति बढ़ा दें तो गैस नहीं बनेगी। योग की अग्निसार क्रिया से आंतों की ताकत बढ़कर पाचन सुधरेगा।